ना जाने क्या जिंदगी ढूंढ रही हैं,
जिंदगी होंगी आसान यह ज़रूरी तो नहीं।
हमने यूंही एक पत्थर उछाला तन्हा बैठे बैठे,
हर सवाल का होगा हल यह ज़रूरी तो नहीं।
ख्वाबों के समंदर में निकली है अपनी कश्ती,
किनारा मिलेगा यह ज़रूरी तो नहीं।
हाथों कि लकीरें हो यां माथे की शिकन,
हर कोई अपने अंजाम तक पहुंचे ये जरूरी तो नहीं।
दरों दीवार को बंद कर जो सर झुकाए रहोगे तुम,
खुशबू तुम्हारी दूर तक जाए यह जरूरी तो नहीं।
अरुण