Tuesday, July 20, 2021

महाकवि राजशेखर

राजशेखर (विक्रमाब्द 930- 977 तक) काव्यशास्त्र के पण्डित थे। वे गुर्जरवंशीय नरेश महेन्द्रपाल प्रथम एवं उनके बेटे महिपाल के गुरू एवं मंत्री थे। उनके पूर्वज भी प्रख्यात पण्डित एवं साहित्यमनीषी रहे थे। काव्यमीमांसा उनकी प्रसिद्ध रचना है। समूचे संस्कृत साहित्य में कुन्तक और राजशेखर ये दो ऐसे आचार्य हैं जो परंपरागत संस्कृत पंडितों के मानस में उतने महत्त्वपूर्ण नहीं हैं जितने रसवादी या अलंकारवादी अथवा ध्वनिवादी हैं। राजशेखर लीक से हट कर अपनी बात कहते हैं और कुन्तक विपरीत धारा में बहने का साहस रखने वाले आचार्य हैं।

जीवनी संपादित करें
राजशेखर महाराष्ट्र देशवासी थे और यायावर वंश (क्षत्रिय) में उत्पन्न हुए थे किन्तु उनका जीवन बंगाल में बीता। इनकी माता का नाम शिलावती तथा पिता का नाम दुहिक या दुर्दुक था और वे महामंत्री थे। इनके प्रपितामह अकालजलद का विरद 'महाराष्ट्रचूड़ामणि' था। राजशेखर की पत्नी चौहान कुल की क्षत्राणी विदुषी महिला थी जिसका नाम अवंतिसुंदरी था। महेंद्रपाल के उपाध्याय होने के साथ ये उसके पुत्र महीपाल के भी कृपापात्र बने रहे। इन दोनों नरेशों के शिलालेख दसवीं शताब्दी के प्रथम चरण (९०० ई. और ९१७ ई.) के प्राप्त होते हैं अत: राजशेखर का समय ८८०-९२० ई. के लगभग मान्य है।

रचनाएँ संपादित करें
राजशेखर ने निम्नांकित ग्रंथों की रचना की थी :

काव्यमीमांसा
बाल रामायण
बाल भारत
कर्पूरमंजरी
विद्धशालभंजिका
भुवनकोश, जिसका निर्देश राजशेखर ने काव्यमीमांसा (पृ. ८९) ने स्वयं किया है और
हरिविलास, जिसका उल्लेख हेमचंद्र ने अपने काव्यानुशासन में किया है।
रीतिविषयक 'रीतिनिर्णय' नामक एक ग्रंथ का इनके नाम से और उल्लेख मिलता है, किंतु वह अप्राप्य है।


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